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क्या था रूस का ख़ुफ़िया स्लीपिंग एक्सपेरिमेंट, वर्षों बाद सामने आई यह खौफनाक सच्चाई

रजा ग्राफी न्यूज:- यह दुनिया है और दुनिया में अच्छी-बुरी चीजे भी होती है,जिंदगी है तो घटनाएँ हैं और घटनाएँ हैं तो फिर उनकी कुछ कहानियां भी हैं. लेकिन कुछ ऐसी कहानियां भी होती हैं, जो आपसे छुपाई जाती है और एक लंबे समय के बाद सामने आती है, जो रूह को हिला और दिमाग को डरा देती हैं यह भूत की कहानी नहीं और यह कोई झूठी घटना नहीं दुनिया में एक अलग बहुत इंपॉर्टेंट चीज है जिसे विज्ञान कहा जाता है, जिसके जरिए ही आज हमने सब कुछ हासिल किया है. साइंटिस्ट इसी तरह के एक्सपेरिमेंट अलग-अलग करके नई-नई चीजों की खोज करते रहते हैं. आइए रूस का एक ऐसा ही एक्सपेरिमेंट आपको बताने वाला हूं, जिसे वर्षों तक रूस ने छुपाए रखा.

स्लीपिंग एक्सपेरिमेंट

आखिर वो कौन-सा एक्सपेरिमेंट था? थंबनेल से आप समझ गया होंगे. वो एक्सपेरिमेंट था ‘स्लीपिंग एक्सपेरिमेंट’ यानी रूस के वैज्ञानिकों ने सन 1940 के वक्त जब वर्ल्ड वॉर टू चल रही थी, ऐसे दौरान जहां कई देश अपने दुश्मन से लड़ रहे थे उसमें सोवियत संघ भी शामिल था और सोवियत संघ उस वक्त कई हजार कैदियों को अपने विद्रोहियों को जेल में डालकर एक्सपेरिमेंट करने की सोचने लगा था. मेरे दोस्तों रूस के वैज्ञानिकों यानी सोवियत संघ के वैज्ञानिकों ने सोचा क्यों ना एक नया एक्सपेरिमेंट करें और उन्होंने अपनी सरकार के आगे एक प्रपोजल रखा कि हम यह देखना चाहते हैं कि इन्सान बिना सोए रह सकता है या नहीं.

सोवियत संघ की सरकार इसलिए कन्वेंस हो गई क्योंकि बात उनके फायदे की थी और ऐसे सैनिक हमें चाहिए थे जो लंबे समय तक लड़ सके तो वैज्ञानिकों ने कहा कि हमें ऐसे सैनिकों की जरूरत है जो लगातार कम से कम 1 महीने तक बिना सोए लड़ सके और मैदान में जंग में दुश्मन को धूल चटा सके. यह प्रपोजल सोवियत संघ की सरकार को बड़ा पसंद आया और इसका अप्रूवल भी मिल गया और पांच कैदियों को जो कि राजनैतिक अपराधी थे और सोवियतसंघ के विरोधी थे. जो कैद में थे.

वैज्ञानिकों ने उनके सामने प्रपोज रखा कि आपको कुछ भी नहीं करना है सिर्फ आपके बिना सोए 30 दिन तक रहना है अगर आप 30 दिन तक बिना सोए रह लेते हैं तो आपके सारे पाप गुनाह माफ कर दिए जाएंगे और आपको आजाद कर दिया जाएगा.

शीशे का चैंबर

आजादी सबको अच्छी लगती है, जिसकी वजह से पांच कैदी मान गए और पूरी तैयारी की गई. मेरे दोस्तों एक शीशे का चैंबर तैयार किया गया उस चैंबर के अन्दर उन पांच कैदियों को रखा गया. 30 दिन का खाना उनका वही स्टोर करके दिया गया ताकि भूख लगने पर वो उनको खा सके. इस चेंबर में हाई क्वालिटी के सीसीटीवी कैमरे लगाए गए और एक मोटे से ट्रांसपेरेंट शीशे के पीछे से वैज्ञानिक लाइव देखते थे. साथ ही सीसीटीवी से भी उन पर नजर रखते थे उसे चेंबर में उनसे बातचीत करने के लिए माइक्रोफोन भी लगाया गया था जिसके जरिए वैज्ञानिक उनसे बातचीत करते थे, शुरुआत के 5 दिन सब कुछ नॉर्मल था सब बेहतर चल रहा था शुरुआत में पांचो लोग एक-दूसरे से हंसी मजाक भी कर रहे थे बस उनके दिमाग में यह था कि हमें सोना नहीं है चेंबर के अंदर ऑक्सीजन लिमिटेड डाली जा रही थी. लेकिन उसे ऑक्सीजन के साथ-साथ एक ऐसी गैस भी डाली जा रही थी जो उनको सोने ना दे. रूसी वैज्ञानिक लगातार इस गैस को छोड़ रहे थे.

बातचीत बंद, नेगेटिव थॉट आने लगे

जिसकी वजह से उन्हें नींद तक नहीं आ रही थी 5 दिन तक जैसा मैंने कहा कि बिल्कुल सब सही चलता रहा, लेकिन अचानक छठे दिन से उन्होंने एक-दूसरे से बातचीत करना बंद कर दिया, बातचीत बंद करने से पहले कुछ तब्दीली ऐसी आई क्योंकि उनकी बातचीत में नेगेटिव थॉट आने लगे, वह अपनी जिंदगी के मुसीबत भरे पल और अपने बुरे वक्त को एक-दूसरे को बताने लगे एक-दूसरे के साथ साझा करने लगे, फिर वैज्ञानिको को नजर आया कि वह एक दूसरे से बात नहीं कर रहे हैं और अलग-अलग बैठे हुए हैं. दोस्तों अब यहां से चीज बदलने लगी थी धीरे धीरे चीजें बदलने लगी और माइक्रोफोन में आकर वह बड़बड़ाने लगे, लेकिन वह क्या बड़बड़ा रहे थे क्या फुसफुसा रहे थे वैज्ञानिकों को समझ नहीं आ रहा था. धीरे धीरे चीजें और बिगड़ने लगी और अब आ गया 9वां दिन यानी 9 दिन बिना सोए उनको हो गए थे.

मलमूत्र या पोटी से ढके शीशे

अब जिस कैमरे के जरिए और जिस शीशे के अंदर वैज्ञानिक वैज्ञानिकों पर नजर रख रहे थे उन पांचो कैदियों ने कागज फाड़े और कागज़ के ऊपर अपना मलमूत्र यानी पोटी करके शीशे पर पूरा चपका दिया. जिससे वैज्ञानिक अब देख नहीं पा रहे थे हालांकि सीसीटीवी कैमरा भी था, लेकिन सीसीटीवी कैमरे के ऊपर भी उन्होंने इसी तरह से कागज को अपने माल से चिपका दिया था. अपने वेस्ट मटेरियल यानी पाखाने से टट्टी से चिपका दिया था. हालात अन्दर के बद से बदतर हो चुके थे. मेरे दोस्तों अब यह 9वां और दसवां दिन बड़ा खतरनाक था. यह वो वक्त था जब उनके चीख पुकार कि बातचीत की आवाज भी आना बंद हो चुकी थी. 9वें दिन एक और घटना यह हुई थी उनकी बोली बंद होने से पहले कि एक व्यक्ति जो देखा गया जो वैज्ञानिकों ने बताया कि हमने देखा कि एक उनमें से जो व्यक्ति है. इतना ज्यादा चीख रहा था, इतना चीख रहा था कि उसकी आवाज गायब हो गई.

14वें दिन जब चैंबर को खोला गया…

उसके गले की नशें बेकार हो गई और उसकी आवाज चली गई और इतनी जोर से चीख रहा था कि किसी के भी कान का पर्दा फट सकता था, लेकिन अजीब यह था कि जो दूसरे चार कैदी थे इन खतरनाक चीखों से उन्हें कोई फर्क नहीं पड रहा था. 9वें दिन तक यह सब चीजें हो गई थीं. इसके बाद दोस्तों जैसा कि मैंने आपको बताया कि अब वैज्ञानिक उन्हें देख नहीं पा रहे थे कैमरे से उनको कुछ नजर नहीं आ रहा था और आवाज पूरी तरह से बंद हो गई थी. अब 14वें दिन प्लान यह किया गया था कि
उस चैंबर को खोला जाए और उसके अंदर जाकर चेक किया जाए कि उन पांचो कैदियों का हाल क्या है. ऐलान किया गया चेंबर के अंदर माइक्रोफोन से वैज्ञानिकों ने बोला कि अगर कोई भी चेंबर के दरवाजे की तरफ आया गोली मार दी जाएगी, हम अंदर आ रहे हैं.

आवाज आई कोई अन्दर ना आए, आखिर क्या हुआ होगा इतने दिनों उसके अन्दर…

अचानक से जो कई दिन से चुप थे वो कैदी बोलने लगे और चीखने लगे कि कोई अंदर ना आए गैस बंद ना करें कोई भी चेंबर का गेट न खोले लेकिन इसके बावजूद वैज्ञानिकों ने अपने सैनिकों के साथ चेंबर के अंदर जाने की हिम्मत की, चेंबर का गेट खुलता है ऑक्सीजन जैसे ही अंदर बाहर से पहुंचती एक कैदी की ऑक्सीजन से ही मौत हो जाती है. खैर दोस्तों अब जब उसकी लास को देखा तो हैरान रह गए वैज्ञानिक उनकी आत्मा तड़प गई, डर कर सहम गए सैनिकों के हाथों में हथियार तो थे लेकिन आपको बता दूं कि हाथ काँप रहे थे. क्योंकि मरने वाला जो शख्स था उसके जिस्म से कई हिस्सों से गोश्त हट चुका था. उंगलियों से गोश्त हटकर हड्डी बाहर आ गई थी. मुंह से भी गोश्त हट चुका था, हालत इतनी खराब थी कि रिपोर्ट में कहा जा रहा है जो कि रिपोर्ट में भी मौजूद है कि गोश्त हट गया था और हड्डियां हाथ के अंदर की दिख रही थी, फेफड़े बाहर तक नजर आ रहे थे और खून जमीन पर बिखरा हुआ था, जो उस कमरे की नाली थी वो पूरी तरह से ब्लॉक हो गई थी और 4 से 5 इंच तक पूरा कमरा खून से भरा हुआ था.

वहीं जो दूसरे कैदी थे उनके भी हाथ, कोनी, कान और जांघों को देखा गया, तो लग रहा था कि उन्होंने अपने हाथों से अपने जिस्म के गोश्त को नोच कर खाया है. उनके दांतों में गोश्त और खून देखा गया, आंखें अंदर धंस चुकी थी चेहरे बिगड़ चुके थे, एक जिंदा भूत की तरह हो गए थे, सबसे अजीब बात यह थी कि राशन पूरे 30 दिन का था, लेकिन उन्होंने सिर्फ पांच दिन ही खाना खाया और उसके बाद से ऐसा लग रहा था कि वो जो उनके साथी हैं या खुद के जिस्म पर लगा हुआ जो मांस है उन्हीं को नोच नोच कर खा रहे थे. मेरे दोस्तों हालत इतनी ख़राब थी कि जो 3-4 कैदी थे उनके कुछ के तो शरीर के जो अंग थे वो बाहर पड़े हुए थे, नशें जुडी हुई थी, चर्बी जुडी हुई थी गोश्त जुडा हुआ था, लेकिन जिस्म के कई ऑर्गन बाहर निकले हुए थे हालात बेहद ख़राब थे.

बिना बेहोश किए 6 घंटों तक कैसे चला ऑपरेशन…

अब वैज्ञानिकों ने सोचा कि इन चारों को निकाल कर इनका इलाज किया जाए वो जिन्दा थे, लेकिन बाहर आने से इनकार कर रहे थे, फिर उनको जैसे तैसे करके बाहर लाया गया और उनका इलाज करने की कोशिश की गई अब पहला जो व्यक्ति था उसका ऑपरेशन करने के लिए उसे बेड पर लिटाया गया और उसको एनेस्थिसिया देने की कोशिश की गई लेकिन उसने एनेस्थीसिया लेने से इनकार कर दिया, तो आपको बता दूं कि बिना उसे बेहोश किए उसके ऑपरेशन को शुरू किया गया. पहले तो आपको बता दूँ कि बिना एनेस्थीसिया दिए 6 घंटे तक ऑपरेशन जब हुआ तो आपको बता दूँ कि चीड-फाड़ वाले दर्द वाले ऑपरेशन में वो बिलकुल शांत था, हंस रहा था, मुस्कुरा रहा था और जब ऑपरेशन हो गया, तो उसने इशारा किया क्योंकि उसका गला फट चुका था, बोल नहीं पाया.

ऑपरेशन के दौरान उनको दर्द क्यों नहीं हो रहा था…

वैज्ञानिकों ने उसे पेन और पेपर दिया उसने लिखा कि मेरे जिस्म के साथ चीडा-फाड़ी, काट-पीट करते रहो, मानो उसको उसी में मजा आ रहा था बिना एनेस्थीसिया दिए सर्जन बार-बार कह रहे थे कि यह इतना बड़ा ऑपरेशन, बिना बेहोश किए, बिना इसको एनेस्थीसिया दिए अगर ऑपरेशन किया तो यह नामुमकिन है कि यह जिंदा रहे, लेकिन इसके बावजूद वह सब के सब जिंदा रहे. बड़ी बात यह है कि वाकियों को जब बिना एनेस्थीसिया दिए ऑपरेशन किए गए तो वो खुश हो रहे थे, ऑपरेशन इतना मुश्किल हो गया था कि उनकी हंसी नहीं रुक रही थी. ऑपरेशन कंप्लीट होने के बाद उन चारों कैदियों ने मांग करी कि हमें उसी चैंबर में फिर से दोबारा डाल दिया जाए. बड़ी मुश्किल में जब कोई रास्ता ना बचा तो वापस उनको उसी चेंबर में डाल दिया गया और गैस दोबारा से ऑन कर दी गई. अब उसके अंदर कैदियों के दिमाग की बेव पर नजर रखी गई, तो जो ब्रेन की वेब थी वो बिल्कुल डेड हो जाती थी यानी बिलकुल सीधी हो जाती थी और फिर अचानक से बेव बनने लगती थी यानी दिमाग मरता था और फिर से जिंदा होता था. फिर काम करना पूरा बंद कर देता था फिर काम करना शुरू कर देता था.

यह सब देखने के बाद वैज्ञानिक पूरी तरह से डर और सहम गए थे. मेरे दोस्तों वैज्ञानिकों ने अपने कमांडर से कहा कि ऑपरेशन बंद कर देना चाहिए लेकिन कमान कमांडर ने यह धमकी दे दी कि यह ऑपरेशन नहीं रुकेगा. वरना तुम्हें भी अन्दर डाल दिया जाएगा. इसी तरह से धीरे-धीरे अपने ही गोश्त को चबा-चबाकर आखिर में सारे मारे गए. अब उन में से सिर्फ एक बचा जिस पर नजर रखी गई थी. रूस की केजीबी खूफिया एजेंसी का हेड इसको लीड कर रहा था. उसने बिगड़ते हुए हालात को देखते हुए कहा कि इस पूरे चैंबर को इसी तरह से सील कर दो यानी इस बात को यहीं दबा दो और अन्दर जो हैं उनको ऐसे ही मरने दो और वैज्ञानिकों समेत सभी को दफना दो. अपने कमांडर के मुह से यह बात सुनने के बाद एक वैज्ञानिक ने तुरंत अपने कमांडर को गोली मार दी.

‘स्लीपिंग एक्सपेरिमेंट’ से वैज्ञानिकों को क्या जानकारी मिली? क्या हासिल हुआ?…

उसके बाद वो चैंबर के अन्दर गया, चैंबर के अन्दर जाने के बाद बचे हुए आखिरी इन्सान से जब उसने बात की तो उसको एहसास हुआ कि यह तो जिन्दा ही नहीं है और इसको जिन्दा भी नहीं रहना चाहिए वो बातें आखिर किस तरह की थी रिपोर्ट में तो लिखी नहीं गई लेकिन ऐसी बातें बोलीं जिससे वैज्ञानिकों को यकीन हो गया कि अब यह इन्सान नहीं हैवान बन गया है मैं आपको बता दूँ कुछ चाँद बाते सामने आईं हैं, जो वैज्ञानिक से उसने कहीं और वैज्ञानिक ने बाद में आकर उन्हें बताया. उसे बचे हुए इन्सान ने बताया कि मैं वो हूँ जिसे आप हर दिन दबा देते हो, मैं वो हूँ जिसे आप सो कर मिटा देते हो मैं आप सब के अन्दर हूँ मैं वो हूँ जो आपके अन्दर हूँ और मांग करता हूँ भीख मांगता हूँ आजाद होने की यानी उस बंदे के द्वारा यह कहा गया कि मैं जो हूं वो एक ऐसा कैरेक्टर हूं जो हर इंसान के अंदर है, लेकिन जब आप सो जाते हैं, तो मैं दब जाता हूँ, मिट जाता हूं और यह चीज नजर नहीं आती, लेकिन मैं बाहर निकलना चाहता हूं, मैं ऐसा ही रहना चाहता हूँ यानी उसने कह दिया कि हर इन्सान के अन्दर हैवान है अगर वो ना ही सोएगा तो वो भी ऐसा ही हो जाएगा.

यह बातें सुनने के बाद वैज्ञानिक ने खुद ही अपने हाथों से उस आखिरी कैदी को भी गोली मार दी. इसके बाद इस खबर को पूरी रिसर्च को दबा दिया गया, लेकिन 69 साल बाद यह रिपोर्ट सामने आई सन 2009 में ‘क्रीपी पास्ता’ नाम की एक वेबसाइट ने जो एक्सपेरिमेंट करती है उसने अपने आर्टिकल में इसे लिखा और इस एक्सपेरिमेंट का जिक्र दुनिया के सामने किया. जब यह कहानी दुनिया के सामने आई तो रूस ने इस कहानी से साफ़ इनकार कर दिया कि इस तरह का कोई भी एक्सपेरिमेंट देश में नहीं किया गया, लेकिन इस एक्सपेरिमेंट को लेकर काफी तथ्य और प्रूफ भी सामने निकलकर आए. कुछ लोगों का मानना था कि यह सच है, वहीँ कुछ लोगों का मानना यह था कि यह काल्पनिक है, लेकिन आज तक इस पर बहस जारी है. रूस ने अपना खतरनाक एक्सपेरिमेंट छुपा तो लिया लेकिन दुनिया के सामने एक बात फिर से आ रही है, जो दिमाग में बैठी है. ऐसा हम बहुत सारे लोगों के अंदर देखते हैं, जो नींद कम लेते हैं, उनके अंदर चिड़चिड़ापन, गुसा हद से ज्यादा होता है, तो शायद उस आखिरी कैदी ने वो बात सच ही कही थी कि मैं तुम सब के अन्दर हूँ शायद वो सच तो नहीं कि जो इन्सान कम सोता है उसका गुस्सा उसका चिडचिडापन बहुत ज्यादा होता है.

दोस्तों आपको हमारी यह रिपोर्ट और रूस का ख़ुफ़िया एक्सपेरिमेंट ‘स्लीपिंग एक्सपेरिमेंट’ के बारे में जानकर आपको कैसा लगा नीचे कमेन्ट कीजिएगा. यदि आप ऐसी ही कहानियों और एक्सपेरिमेंट के बारे में और जानना चाहते हैं, तो कमेन्ट में जरुर लिखिएगा.

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