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ईद उल फ़ित्र इस्लामी संस्कृति और सभ्यता का प्रतीक

रजा ग्राफी न्यूजः- हमारा देश भारत में अलग-अलग जातियों और धर्मों के मानने वाले रहते हैं। इन अलग-अलग जातियों और धर्मों के मानने वाले लोगों में कुछ बातें तो एक जैसी मिलती जुलती हैं, जैसे रहने-सहने का ढंग, खान पान का तरीके, अलग-अलग क्षेत्रों में लोगों की भाषा की समानता इत्यादि, किन्तु कुछ बातें ऐसी भी हैं कि उनमें समरूपता नहीं भी पायी जाती है। जैसे इबादत (पूजा) के तरीके, रस्म-रिवाज और त्योहार इत्यादि। इसीलिए कहा जाता है कि भारत में अनेकता में एकता है। यहां अलग-अलग धर्मों के मानने वाले लोग अपने-अपने तरीके से यहाँ त्योहार मनाते हैं। कुछ त्योहार बड़ी ही धूम-धाम के साथ मनाये जाते हैं और कुछ संजीदगी और शालीनता से। हर जाति और धर्म के मानने वालों के अपने कुछ विशेष त्योहार होते हैं। वास्तविकता यह है कि ये त्योहार किसी भी जाति या धर्म का प्रतिनिधित्व करते हैं। अतः यह कहा जा सकता है कि यदि किसी जाति धर्म के बारे में जानना हो, तो उसके त्योहार को देख लीजिए। आपको उसकी गहराई का पता लग जाएगा।

त्योहार का संबंध वास्तव में मनुष्य की भावनाओं से होता है। मनुष्य की स्वभाविक इच्छा होती है कि वह प्रसन्नता प्रकट करे। फिर इस प्रसन्नता को वह कभी अकेले व्यक्त करता है और सामूहिक रूप से भी। त्योहार वास्तव में इसी प्रसन्नता को सामूहिक रूप से प्रकट करने का दूसरा नाम है। उन भावनाओं और अनुभूतियों का संबंध, जो किसी त्योहार की आत्मा की हैसियत रखती हैं या तो किसी व्यक्तित्व से होता है या किसी विशेष मौसम या किसी विशेष ऐतिहासिक घटना से या फिर उनके पीछे कोई परंपरा या अंधविश्वास काम कर रहा होता है।
अन्य देशवासियों की तरह मुसलमान भी यहां रहते हैं। इनका धर्म इस्लाम है, जो एक सर्वव्यापक और विश्व स्तरीय धर्म की हैसियत रखता है। इस धर्म के सभी आदेशों एवं निर्देशों में सार्वभौमिकता और विश्व स्तरीय शान पायी जाती है। यह एक स्वभाविक धर्म है। चँूकि प्रसन्नता प्रकट करना मनुष्य का स्वभाव है, तो इस्लाम धर्म ने भी मनुष्य के इस स्वभाव का ध्यान रखते हुए दो त्योहार रखे हैं- ईद उल फ़ित्र और ईदुल अज़हा। इनके अतिरिक्त शबेबारात, मुहर्रम और बारह बफात इत्यादि सब मुसलमानों के अपने त्योहार हैं। ईद उल-फ़ित्र इस्लामी कलैन्डर के अनुसार रमज़ान माह के 29 या 30 रोजे रखने के बाद शव्वाल माह की पहली तारीख़ को मनायी जाती है।

ईद उल फ़ित्र को सामूहिक रूप से मनाया जाता है। चाहे किसी रंग और नस्ल के हों, कोई भाषा बोलते हो, दुनिया के किसी भी क्षेत्र में रहते हों, किसी कबीले और खानदान से सम्बन्ध रखते हों और चाहे किसी भी हैसियत के हों, सभी मुसलमान बिना किसी भेदभाव सामूहिकता की भावना के साथ इस त्योहार को मनाते हैं। इस त्योहार को मनाने का तरीका भी तमाम मुसलमानों का एक ही है। इसके मनाने में संजीदगी और शालीनता अद्वितीय है। किसी प्रकार का कोई भी शोर-गुल नहीं, कोई ढ़ोल-तमाशा नहीं, कोई गाना बजाना नहीं, कोई राग-रंग नहीं। सिर्फ अल्लाह तआला की महान सत्ता के स्तुति और गुणगान को इसमें सम्मिलित करके मानों त्योहार को भी इबादत का स्थान दे दिया।
वास्तविकता यह है कि यह त्योहार जगत के पालनहार अल्लाह तआला के समक्ष धन्यवाद प्रेषित करने का त्योहार है। धन्यवाद इस बात पर कि जगत के पालनहार ने मनुष्य के मार्गदर्शन हेतु एक पवित्र ग्रंथ ष्कुरआनष् प्रदान किया। एक भटके हुए इन्सान के साथ यदि कोई व्यक्ति सबसे उत्तम नेकी करना चाहे, तो वह नेकी वास्तव में इसके अतिरिक्त और कोई नहीं हो सकती कि उसका मार्गदर्शन उसके गंतव्य या मंजिल की ओर कर दिया जाए और सीधे रास्ते पर डाल दिया जाए। अतएव करूणामय और दयामय अल्लाह तआला ने यह पुस्तक ष्कुरआनष् अवतरित (नाजिल) करके मनुष्य के ऊपर महान उपकार (अल्लाह तआला की ओर से मुसलमानों को दिया गया तोहफा) किया है, जिसके लिये दुनिया भर के मुसलमान अल्लाह तआला को शुक्र अदा करते हुये खुशी का इजहार करते हैं।

ईद के दिन सभी स्त्री-पुरूष, बूढ़े- बच्चे, अमीर-गरीब सुबह स्नान करते हैं। अच्छे-अच्छे और साफ-सुथरे नये-नये कपड़े पहनकर खुशबू लगाते हैं और ईदगाह जाने की तैयारी करते हैं। जिनको अल्लाह ने दौलत से नवाजा है, उन पर ईदगाह जाने से पूर्व अपने माल में से एक निश्चित मात्रा में ष्सदका-ए-फ़ित्रष् अदा करना अनिवार्य है, ताकि वे मुसलमान भाई-बहन जो किसी कारणवश आर्थिक दौड़ में पीछे रह गये हैं, इस प्रसन्नता में सम्मिलित हो सकें। सब लोग बस्ती से बाहर ईदगाह या बस्ती के अन्दर ही बड़ी मस्जिद का रूख करते हैं। रास्ते में अल्लाह तआला की शान का गुणगान करते हुए संजीदगी और शालीनता से साथ चलते हैं और मस्जिद में पहुँचकर नमाज़ अदा करते हैं।
वास्तविकता यह है कि खुशी और प्रसन्नता अपने ठीक अर्थोंे में उसी समय व्यक्त होती है जब बन्दे एक ही कतार में खड़े होकर अल्लाह तआला की इबादत करते हैं, सभी लोग एक साथ सिर झुका कर सजदा करते हैं। इस तरह नमाज़ पूर्ण हो जाने के पश्चात इमाम साहब भाषण देते हैं और मुसलमानों को अच्छी-अच्छी नसीहतें करते हैं और नैतिकता को अपनाने, ग़रीबों का ख़याल रखने और केवल एक अल्लाह तआला की इबादत करने की शिक्षा देते हैं। उसके पश्चात सभी लोग उसी संजीदगी और शालीनता के साथ एक-दूसरे के गले लगकर खुशी का इजहार करते हुये अपने-अपने घरों को रवाना हो जाते हैं। घर जाकर सब एक-दूसरे के साथ मिलकर सेवइयाँ, मिठाई और पकवान इत्यादि खाते खिलाते हैं और खुशी का इजहार करते हैं।
यह त्योहार हमें यह सीख देता है कि सारे इन्सान एक ही परिवार के सदस्य की हैसियत रखते हैं। उनमें परस्पर हमदर्दी और प्रेम का संबंध होना चाहिए। इस त्योहार में है। आदेश है कि रोजे़दारों के रोज़े अल्लाह तआला के यहाँ स्वीकार नहीं होते जब तक कि वे (जो धनवान हैं) सदका-ए-फ़ित्र अदा न करें।
वास्तव में यह त्योहार अपने दामन में सारी इन्सानियत को समेट लेना चाहता है। सारे इन्सानों को आपस में प्रेम करने वाले और एक-दूसरे के काम आने वाले और प्रसन्नचित्त देखना चाहता है। यदि ध्यानपूर्वक अध्ययन किया और देखा जाए, तो ईद इस्लाम के सत्य धर्म होने की पूर्ण तस्वीर प्रस्तुत करती है। इस त्योहार से जहाँ एक ओर इस्लाम का पूर्ण प्रतिनिधित्व होता है, वहीं अज्ञान का निषेध भी होता है।

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